ज़रा सी हंसी लबों पर उनकी
--- "खुदगर्ज़ नदीम "
और चेहरा चाँद सा निखर-निखर गया
बरसों से सूखे पड़े थे जो चश्म
आज पल में भर-भर सा गया ....
कहती थी खामोश निगाहें उनकी
दर्द जो सितमगर दे गया
आज लबों ने ज़रा सी हरकत क्या की
दस्तक खिज़ा में बहार दे गया ....
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